गुरुवार, 5 जून 2008

मै कवि हूँ / कुमार विश्वास



सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी

होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी

हर विवश आँख के आँसू को

यूँ ही हँस हँस पीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाऒं की

हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाऒं की

दे प्राण देह का मोह छुडाने वाली हाडा रानी की

मीराऒं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की

मुझको ही कथा सँजोनी है,

मुझको ही व्यथा पिरोनी है

स्मृतियाँ घाव भले ही दें

मुझको उनको सीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ

या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ

देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते

या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते

इन द्रौपदियों के चीरों से

हर क्रौंच-वधिक के तीरों से

सारा जग बच जाएगा पर

छलनी मेरा सीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा


कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले

पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले

सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना

शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना

पीडा की इस मधुशाला में

आँसू की खारी हाला में

तन-मन जो आज डुबो देगा

वह ही युग का मीना होगा

मै कवि हूँ जब तक पीडा है

तब तक मुझको जीना होगा

1 टिप्पणी:

Vandana Singh ने कहा…

ek pankti suni thi ... jahan na pahunche ravi vahan pahunche kavi, ....kumar vishvas ji is rachna ko padhne par pata chala kitni sahi ye baat